Saturday, December 5, 2009

2

नई नहीं है बात न जाने फिर क्यों लेकिन
आँखे उसकी मुझसे कुछ कुछ पूछ रही हैं
बदल गयी है उसके चेहरे कि रंगत भी
सालों में कुछ बदला तो इतना बदला है

उसके मन कि बात न जाने सच्ची कितनी
मुझको फिर से दोषी बनना होगा शायद
इस चिता को जले हुए तो अरसा बीता
फिर क्यों इसमें से आज धुआं निकला है

मुझको  पानी कि ठंडक का पता नहीं था
डूब गया हूँ इतना गहरा पता नहीं था
उसने बोला था समय के  पंख हैं होते
मेरा तो सालों का सफ़र ठहर गया है

सही गलत तो सारी  है गणित कि बातें
सब को सब समझाना कैसे मुमकिन होता
कहते हैं सब कुछ पहले से तय होता है
फिर क्यों लगता है कहीं तो गलत हुआ है

Monday, November 2, 2009

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अब तो हंसी के भी ऊँचे दाम होते हैं 
और खुशियों के पैमाने जाम होते हैं.
मुद्दतें बीत गयी चौपाल पे बैठे हुए 
आखिर शाम को भी तो कई काम होते हैं.

एक अरसे से उसने हाल मेरा पुछा नहीं
अब जनाजों में ही दुआ सलाम होते हैं
कट गया चौक से एक और दरख्त 
इमारती लकडी के मंहगे दाम होते हैं


उस माँ को कहते सुना मिटटी में न खेल
बिमारियों के भी कई नाम होते हैं
और छूट गया खेल कंचो का मोहल्ले से
ऊँचे तबकों में मां बाप बदनाम होते हैं


आज देखा उसने मुझे इत्मिनान से लेकिन 
हर मुहब्बत के जुदा अंजाम होते हैं 
तुझको रुसवा न करेंगे ये वादा रहा
आखिर शायरों के भी कुछ ईमान होते हैं

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