Sunday, January 24, 2010

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मेरी मौत की ताकीद सुनाने वाले
मुझको मिलते है मेरे राज़ बताने वाले
मेरे होंठो की हंसी पर  हैरां हो क्यूँ 
अब भी बाकी  है मेरे घर में कमाने वाले

वक़्त का खेल मैंने भी बहुत खेला है
मुझको भी जानते है आज ज़माने वाले
चूक गया आज तीर उनका भी 
जिनको कहते थे सूरमा निशाने वाले

तेरी  हसरत में   उम्र निकलती  जाये
हम  नहीं  यादों  को  भुलाने  वाले
ये तो आँखों का नशा है उनकी
वरना और भी मिलते हैं पिलाने वाले

नाम निकला है मेरा भी गैरों में
कौन थे तेरी फेहरिस्त बनाने वाले
छोड़ दे जंग ये बात पुरानी हुई
मिट गए हमको कई लोग मिटाने  वाले

5 comments:

  1. वक़्त का खेल मैंने भी बहुत खेला है
    मुझको भी जानते है आज ज़माने वाले
    चूक गया आज तीर उनका भी
    जिनको कहते थे सूरमा निशाने वाले..
    वाह बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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  2. तेरी हसरत में उम्र निकलती जाये
    हम नहीं यादों को भुलाने वाले
    ये तो आँखों का नशा है उनकी
    वरना और भी मिलते हैं पिलाने वाले

    क्या बात है हितेश जी .......... सच है पिलाने वाले तो बहुत हैं पर नशा तो तब आएगा जब वो हों ........

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  3. आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  4. बबली जी , दिगंबर जी , आपकी टिप्पणियों के लिए हार्दिक धन्यवाद्.

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  5. नाम निकला है मेरा भी गैरों में
    कौन थे तेरी फेहरिस्त बनाने वाले ....

    Ye to khaas hai bhaai. Waah!

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