Wednesday, March 18, 2015

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सच बोल के हम सब के गुनाहगार हो गए
मेरे शहर के लोग समझदार हो गए
कह के चले थे मुल्क को बदलेंगे एक रोज़
वो आदमी जो भीड़ में शुमार हो गए !

हमने सुना है रात वो आया था इस गली
उसकी नज़र के हम भी इक शिकार हो गए
जिसको भुलाने पी गए हम सारा मैकदा
वो मिल गया तो मै  के तलबगार हो गए !

पूछे कोई तो बोलना की मर गया साहिब
जो सच कहा तो दोस्त भी मक्कार हो गए
जिनके ज़मीर और जवानी पे दाग है
वो लोग इस निज़ाम में सरकार हो गए !

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शहर ए  दिल्ली में असरदार कितने हैं ,
उसकी बातों से खबरदार कितने हैं.
मज़हबी रंग में बनती बिगड़ती सरकारें ,
जम्हूरियत में समझदार कितने हैं।

मुफ़लिसी के दौर में नज़र आया ,
दोस्तों में मददगार  कितने हैं
चोर को चोर कहना गुनाह है साहब
निज़ाम गिनता है - गुनहगार कितने हैं

लूट गयी आबरू सरे बाज़ार फिर से
हुक्मराँ ए हिंद लाचार कितने हैं।
वो सियासत में दोस्त कहता है ,
दिल से पूछ वफादार कितने हैं 

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