Wednesday, March 18, 2015

16

सच बोल के हम सब के गुनाहगार हो गए
मेरे शहर के लोग समझदार हो गए
कह के चले थे मुल्क को बदलेंगे एक रोज़
वो आदमी जो भीड़ में शुमार हो गए !

हमने सुना है रात वो आया था इस गली
उसकी नज़र के हम भी इक शिकार हो गए
जिसको भुलाने पी गए हम सारा मैकदा
वो मिल गया तो मै  के तलबगार हो गए !

पूछे कोई तो बोलना की मर गया साहिब
जो सच कहा तो दोस्त भी मक्कार हो गए
जिनके ज़मीर और जवानी पे दाग है
वो लोग इस निज़ाम में सरकार हो गए !

3 comments:

  1. बहुत खूब .. शानदार शेर हैं ग़ज़ल के ...

    ReplyDelete
  2. अहा क्‍या बात है.........., मेरे शहर के लोग समझदार हो गए। बहुत खूब।

    ReplyDelete

Recent

43

नहीं वो बात अब पीपल की ठंडी छांव में   शहर बसने लगा है रोज़ मेरे गांव में न जाने बोलियां मीठी कहाँ गायब हुई   नहीं है फर्क कोई कूक में और...

Popular