Thursday, July 14, 2016

19

तेरी नज़र , नज़ारे बहुत हैं.
समंदर एक है, किनारे बहुत हैं
यारों पे अख्तियार रखता हूँ
गिर भी गया तो सहारे बहुत हैं
छोड़ दो लफ्ज़ इस शाम में
दो आँखें हैं, इशारे बहुत हैं
कोई उम्मीद नहीं सच की साहब
इस शहर में तुम्हारे बहुत हैं ,
चाँद मुबारक हो आशिक़ों को
मेरे इश्क़ को सितारे बहुत हैं 

18

साल बदलता है, दिन बदलता नहीं
इस शहर का सूरज, रात में भी ढलता नहीं
गुफ्तगू क्या होगी इन महफ़िलो में साहब
सब कहते हैं, कोई सुनता नहीं
तेरी याद, तेरी बात, तेरा चेहरा,और वो रात
कुछ भी तो दिल से निकलता नहीं
बड़ा सख्त है मेरा नसीब लिखने वाला
लाख रोने से भी बेदर्द पिघलता नहीं
मुझको मुक़द्दर की दुहाई न दे दोस्त
खुदा और मोहब्बत आदमी चुनता नहीं
तू बन तो बन चाँद के मानिंद
तारे कई हैं , कोई गिनता नहीं

17

न कुछ अाता है, न कुछ जाता है
सच वो है, जो राजा बताता है ,
मदारी के पैर मे घुंगरू हैं
और बंदर डुगडुगी बजाता है
वो सियासत मे बस पियादा है
भीड़ मे जो नारे लगाता है
वो बात करेंगे मुस्तकबिल की
बात करने मे क्या जाता है
बस मैला हो के ही निकला
इस हमाम मे जो भी नहाता है
कल उसको भूख से मरते देखा
वो शख्श जो रोटिया उगाता है

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