तुम बेवजह बदनाम करोगे
मालूम था ये काम करोगे
ज़िंदगी काफ़ी न थी मेरी
अब नींद भी हराम करोगे
मैं बनाता हूँ महल रेत का
तुम बारिश तमाम करोगे
ये ज़िद भी क्या ज़िद है
तुम्हीं सुबह तुम्हीं शाम करोगे
गुज़र जाने दो मुझे फिर
इंशाल्लाह आराम करोगे
मालूम था ये काम करोगे
ज़िंदगी काफ़ी न थी मेरी
अब नींद भी हराम करोगे
मैं बनाता हूँ महल रेत का
तुम बारिश तमाम करोगे
ये ज़िद भी क्या ज़िद है
तुम्हीं सुबह तुम्हीं शाम करोगे
गुज़र जाने दो मुझे फिर
इंशाल्लाह आराम करोगे
बहुत खूब सर,
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