Saturday, November 11, 2017

21

निगाहों निगाहों में मिलते रहे हम
न तुमने कहा कुछ न मेने सुनाया
वो दूरी कहाँ थी, वो कुछ फासले थे
न तुम आगे आयी न मैं आगे आया

न तुम थीं अकेले, न मैं था अकेले
थे चारों  तरफ बस सवालों के घेरे
खुद ही सवालों में उलझे रहे हम
न तुमको मिला कुछ न मैंने  ही पाया.

लकीरों को दोषी कहें भी तो कब तक
ये हालात आखिर सहें भी तो कब तक
ये बातें किताबी सबक बन रहीं हैं
न अपना है कोई न कोई पराया.

20

इस रात की गहराई में कुछ, आवाज़ बदलती जाती है
एक सन्नाटा सा पसरा है, ख़ामोशी सी छा जाती है ..
कुछ टप टप करती बूदें हैं, कुछ आड़े तिरछे साये हैं
ये मेरा ही घर लगता है, फिर नींद कहाँ खो जाती है.

वो अक्सर मुझसे पूछते हैं, कोई राज़ तुम्हारे दिल में है
मैं अपने दिल से पूछ रहा, क्यों नौबत ऐसी  आती है.
ये  लोग पुराने कहते हैं, सपने भी सच्चे होते हैं,
वो आंख लगाकर बेठे हैं,बस उम्र गुज़रती जाती है.

Thursday, July 14, 2016

19

तेरी नज़र , नज़ारे बहुत हैं.
समंदर एक है, किनारे बहुत हैं
यारों पे अख्तियार रखता हूँ
गिर भी गया तो सहारे बहुत हैं
छोड़ दो लफ्ज़ इस शाम में
दो आँखें हैं, इशारे बहुत हैं
कोई उम्मीद नहीं सच की साहब
इस शहर में तुम्हारे बहुत हैं ,
चाँद मुबारक हो आशिक़ों को
मेरे इश्क़ को सितारे बहुत हैं 

18

साल बदलता है, दिन बदलता नहीं
इस शहर का सूरज, रात में भी ढलता नहीं
गुफ्तगू क्या होगी इन महफ़िलो में साहब
सब कहते हैं, कोई सुनता नहीं
तेरी याद, तेरी बात, तेरा चेहरा,और वो रात
कुछ भी तो दिल से निकलता नहीं
बड़ा सख्त है मेरा नसीब लिखने वाला
लाख रोने से भी बेदर्द पिघलता नहीं
मुझको मुक़द्दर की दुहाई न दे दोस्त
खुदा और मोहब्बत आदमी चुनता नहीं
तू बन तो बन चाँद के मानिंद
तारे कई हैं , कोई गिनता नहीं

17

न कुछ अाता है, न कुछ जाता है
सच वो है, जो राजा बताता है ,
मदारी के पैर मे घुंगरू हैं
और बंदर डुगडुगी बजाता है
वो सियासत मे बस पियादा है
भीड़ मे जो नारे लगाता है
वो बात करेंगे मुस्तकबिल की
बात करने मे क्या जाता है
बस मैला हो के ही निकला
इस हमाम मे जो भी नहाता है
कल उसको भूख से मरते देखा
वो शख्श जो रोटिया उगाता है

Wednesday, March 18, 2015

16

सच बोल के हम सब के गुनाहगार हो गए
मेरे शहर के लोग समझदार हो गए
कह के चले थे मुल्क को बदलेंगे एक रोज़
वो आदमी जो भीड़ में शुमार हो गए !

हमने सुना है रात वो आया था इस गली
उसकी नज़र के हम भी इक शिकार हो गए
जिसको भुलाने पी गए हम सारा मैकदा
वो मिल गया तो मै  के तलबगार हो गए !

पूछे कोई तो बोलना की मर गया साहिब
जो सच कहा तो दोस्त भी मक्कार हो गए
जिनके ज़मीर और जवानी पे दाग है
वो लोग इस निज़ाम में सरकार हो गए !

15

शहर ए  दिल्ली में असरदार कितने हैं ,
उसकी बातों से खबरदार कितने हैं.
मज़हबी रंग में बनती बिगड़ती सरकारें ,
जम्हूरियत में समझदार कितने हैं।

मुफ़लिसी के दौर में नज़र आया ,
दोस्तों में मददगार  कितने हैं
चोर को चोर कहना गुनाह है साहब
निज़ाम गिनता है - गुनहगार कितने हैं

लूट गयी आबरू सरे बाज़ार फिर से
हुक्मराँ ए हिंद लाचार कितने हैं।
वो सियासत में दोस्त कहता है ,
दिल से पूछ वफादार कितने हैं 

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