Thursday, October 11, 2018

43

नहीं वो बात अब पीपल की ठंडी छांव में 
शहर बसने लगा है रोज़ मेरे गांव में
न जाने बोलियां मीठी कहाँ गायब हुई 
नहीं है फर्क कोई कूक में और कांव में
किसी के घर नहीं जाता कोई अरसे तलक
के जैसे बांध ली बेड़ी सभी ने पांव में
ये बच्चे खेलते हैं चीन के डब्बों से अब 
हमारा दिल अभी भी कागज़ो की नाव में
मोहब्बत, दोस्ती, महफ़िल, चिलम और चाय भी 
तरक़्क़ी के लिए क्या क्या लगाया दांव में

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