शनिवार की शाम का चाय का प्याला एक अजीब सा सुकून देता है. सोफे पर पैर पसार के न जाने टी वी पर क्या देखना है, बासी समाचार या उत्तेजक एंकर. रिमोट का भी अंगूठे से मर्दन. साला , अब कोई अच्छा चेनल रहा ही नहीं. पाउलो केलो भी बेकार लगता है.. कितना पढो एक इंसान को. पढाई तो कभी दिलचस्प थी ही नहीं. ये तो शौक है , गिफ्ट में लोग किताबें देने लगे है. कभी जब बोरियत का चरम आ जाता है, तो लगता है की चलो उस किताब की ही सुध ले ली जाये.. सुना है किताबो से बोरियत भागती है.
देश तरक्की कर ही नहीं सकता. कितना बकवास बिस्कुट है. और दाम देखो साले . सब मार्केटिंग का कमाल है साब. इस बिस्कुट को भी मॉडल बिकनी में बेचती है. हाँ ग्लूकोज़, विटामिन और न जाने क्या क्या है इसमें, पर कमबख्त चाय के साथ मज़ा ही नहीं देता. ये मज़ा भी बहुत गहरी चीज़ है. किस चीज़ में आ जाये पता ही नहीं.. अपनी पत्नी के साथ रात भर में न आये, और पड़ोसन की मिनी स्किर्ट में ही .... ! खैर .. ग़ालिब बाबा बहुत पहले ही कह गए - 'हजारो ख्वाहिशें ऐसी...'
भाई अँगरेज़ जेसे भी थे पर चाय की चुस्की का रहस्य जान चुके थे. क्या चीज़ है भाई साब , और अदरक .. भाई जान डाल देता है.. जेसे जेसे चाय ख़तम हो और कप का तला दिखता है मन करता है बस ये पल यही थम जाये .. ये भी एक नशा है.. आवाज़ लगानी चाहिए क्या - "एक कप और ..." . साला , न तुम बाबूजी हो और न वो तुम्हारी अम्मा ! आजकल बीवियां एक ही टाइम चाय पिलाती हैं ! मर्द बनते हो ना , हिम्मत है तो लगा के देखो आवाज़. बात करते हैं ... चलो छोड़ो ... एक सिगरेट तो बनती है भाई ! पर नीचे जाना पड़ेगा .. घर में तो बीवी ही फायर अलार्म बन जाती है ! पांचवे फ्लोर से नीचे... सोफे की इस आनंदमयी पसर से मुक्ति.. अब ये जंग है.. आलसमई आनंद की जीत होगी या, नीड कम तलब की ...
..हितेश जी आपका ब्लॉग पहली बार देखा , रोचक लेख आभार
ReplyDeletegood one Hitesh, enjoyed it a lot
ReplyDeletebahut achhe mathpal ji... adrakhee chaay ki tarah mazaa aa gaya :)
ReplyDelete-Vikas Joshi