Thursday, October 11, 2018

43

नहीं वो बात अब पीपल की ठंडी छांव में 
शहर बसने लगा है रोज़ मेरे गांव में
न जाने बोलियां मीठी कहाँ गायब हुई 
नहीं है फर्क कोई कूक में और कांव में
किसी के घर नहीं जाता कोई अरसे तलक
के जैसे बांध ली बेड़ी सभी ने पांव में
ये बच्चे खेलते हैं चीन के डब्बों से अब 
हमारा दिल अभी भी कागज़ो की नाव में
मोहब्बत, दोस्ती, महफ़िल, चिलम और चाय भी 
तरक़्क़ी के लिए क्या क्या लगाया दांव में

Tuesday, January 23, 2018

42

हर बात पे अब बात नहीं की जाती
बात ये है के अब बात नहीं की जाती
 

सुनते हैं उसको भी चुपचाप देखा लोगों ने
और हमसे भी कोई बात नहीं की जाती

जिस तरफ़ देखिए बस बात का तमाशा है
बात करने को कहीं बात नहीं की जाती

आप और उन से गिला कोई नहीं है हमको
हमसे ख़ुद से ही मगर बात नहीं की जाती


एक वो दौर था के रात भी पूरी ना पड़ी
एक ये दिन के जहाँ बात नहीं की जाती

 
इस तरफ़ मौत है , भूख है, जहालत है
उस तरफ़ लोग है पर बात नहीं की जाती

इस शहर में हैं अंजुमन ओ दौर बहुत
गले मिलते हैं फ़क़त बात नहीं की जाती

Sunday, January 14, 2018

41

सेहरा की दोपहर में नमी बन के रहना 
आदमी को मुश्किल है आदमी बन के रहना 

मैं बरसूंगा एक दिन आखिरी बूँद तक 
तुम खेत सी सूखी ज़मी बन के रहना 

तस्वीर ज़िन्दगी की मुकम्मल नहीं हो जिससे 
वो रंग बन के रहना वो कमी बन के रहना 

ये सितारे खूब  रश्क़  करते हैं फिर भी 
चाँद को आता है लाज़मी बन के रहना 

Friday, January 5, 2018

40

ये सांसे यूँ ही चलनी है, ये उम्र यूँ ही निकालनी है
ज़रा बैठो  तसल्ली से, मुझे कुछ बात करनी है

अभी तुम कह नहीं सकते के मंज़िल पास है मेरे
अभी ये रेलगाड़ी कितने शहरो से गुज़ारनी है

कई फ़रियाद ले के मैं गया था उसके दर लेकिन
खुदा मसरूफ इतना है , उसे कहाँ मेरी  सुननी  है

मुझे घर की फ़िकर  है रात भर सोने नहीं देती
कहीं दरवाज़ा टूटा है कहीं खिड़की बदलनी है

मेरे मेहमान सारे जश्न ए फुरकत और देखेंगे
के मेरी रुह भी मेरे लहू के साथ जलनी  है

Wednesday, December 27, 2017

39

एक मुद्दत से शहर ए  दिल्ली में ,
होशवाले नज़र नहीं आये

उसके दरवाज़े तक तो आये थे हम ,
और अंदर मगर नहीं आये

क्या सितम है के तेरी महफ़िल में
धड़ तो आये सर नहीं आये

उन परिंदो का फिक्रमंद हूँ  जो
शाम से अपने घर नहीं आये

ये सफर साथ तय किया हमने
वक़्त आया तो तुम  नहीं आये


एक शख़्श पे तुमने जां  बिछा दी है
क्या होगा वो अगर नहीं आये

Tuesday, December 26, 2017

38

तेरे हर ख़्वाब में मेरा भी बसेरा करना
यहाँ मुमकिन नहीं हर शब को सवेरा करना

कितना मुश्किल है उस शख़्स को मेरा करना
कितना मुश्किल है उस शख़्स को तेरा करना

मुझको एक उम्र लगी जुगनुओं को लाने में
तुमको आसान था इस घर में अँधेरा करना

इन परिंदों को भला किसने बताया होगा
कहाँ उड़ना और किस शाख़ पे डेरा करना

बादलों हो अगर तो जंग ए आफ़ताब करो
तुमसे होता है सिर्फ़ चाँद का घेरा करना

36

तुम बेवजह बदनाम करोगे
मालूम था ये काम करोगे

ज़िंदगी काफ़ी न थी मेरी
अब नींद भी हराम करोगे

मैं बनाता हूँ महल रेत का
तुम बारिश तमाम करोगे

ये ज़िद भी क्या ज़िद है
तुम्हीं सुबह तुम्हीं शाम करोगे

गुज़र जाने दो मुझे फिर
इंशाल्लाह आराम करोगे

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