ये सांसे यूँ ही चलनी है, ये उम्र यूँ ही निकालनी है
ज़रा बैठो तसल्ली से, मुझे कुछ बात करनी है
अभी तुम कह नहीं सकते के मंज़िल पास है मेरे
अभी ये रेलगाड़ी कितने शहरो से गुज़ारनी है
कई फ़रियाद ले के मैं गया था उसके दर लेकिन
खुदा मसरूफ इतना है , उसे कहाँ मेरी सुननी है
मुझे घर की फ़िकर है रात भर सोने नहीं देती
कहीं दरवाज़ा टूटा है कहीं खिड़की बदलनी है
मेरे मेहमान सारे जश्न ए फुरकत और देखेंगे
के मेरी रुह भी मेरे लहू के साथ जलनी है
ज़रा बैठो तसल्ली से, मुझे कुछ बात करनी है
अभी तुम कह नहीं सकते के मंज़िल पास है मेरे
अभी ये रेलगाड़ी कितने शहरो से गुज़ारनी है
कई फ़रियाद ले के मैं गया था उसके दर लेकिन
खुदा मसरूफ इतना है , उसे कहाँ मेरी सुननी है
मुझे घर की फ़िकर है रात भर सोने नहीं देती
कहीं दरवाज़ा टूटा है कहीं खिड़की बदलनी है
मेरे मेहमान सारे जश्न ए फुरकत और देखेंगे
के मेरी रुह भी मेरे लहू के साथ जलनी है
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