ए खुदा इतनी सी तू मुझ पे इनायत कर दे
मेरे कातिल कि भी मेरी सी हालत कर दे !
मेरे दुश्मन तेरे सजदे में झुके हैं शायद
मान ले उनकी दुआ थोड़ी सियासत कर दे !
कभी महबूब था जो आज है मुंसिफ मेरा
चलो अछा है निगाहों को अदालत कर दे !
अब तो दिल भी मेरा मुझसे खफा रेहता है,
जाने किस रोज़ कमबख्त बगावत कर दे !
तेरे अहसान किसी रोज़ चुका दूंगा मैं -
कभी टूटे हुये रिश्तों की तिज़ारत कर दे !
तू तो काफिर भी नहीं है , नमाज़ी भी नहीं
अब जो करनी है तो महबूब ए इबादत कर दे !
यूं नहीं देख उसे छुप के भरी मेहफिल मे
उसकी आँखें न उसके दिल से शिकायत कर दे !
बड़े साहेब बने फिरते हो शहर ए दिल्ली में ,
वक़्त का क्या है किस रोज़ क़यामत कर दे !
वाह वाह .. क्या बात है ... खूबसूरत शेर हैं ...
ReplyDeleteअभार मित्र, स्नेह !
ReplyDeleteए खुदा इतनी सी तू मुझ पे इनायत कर दे
ReplyDeleteमेरे कातिल कि भी मेरी सी हालत कर दे ! bahut khoob ..isse badi saja to koi ho hi nahi sakti ....
Wah hazrat wah.....
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