सच बोल के हम सब के गुनाहगार हो गए
मेरे शहर के लोग समझदार हो गए
कह के चले थे मुल्क को बदलेंगे एक रोज़
वो आदमी जो भीड़ में शुमार हो गए !
हमने सुना है रात वो आया था इस गली
उसकी नज़र के हम भी इक शिकार हो गए
जिसको भुलाने पी गए हम सारा मैकदा
वो मिल गया तो मै के तलबगार हो गए !
पूछे कोई तो बोलना की मर गया साहिब
जो सच कहा तो दोस्त भी मक्कार हो गए
जिनके ज़मीर और जवानी पे दाग है
वो लोग इस निज़ाम में सरकार हो गए !
मेरे शहर के लोग समझदार हो गए
कह के चले थे मुल्क को बदलेंगे एक रोज़
वो आदमी जो भीड़ में शुमार हो गए !
हमने सुना है रात वो आया था इस गली
उसकी नज़र के हम भी इक शिकार हो गए
जिसको भुलाने पी गए हम सारा मैकदा
वो मिल गया तो मै के तलबगार हो गए !
पूछे कोई तो बोलना की मर गया साहिब
जो सच कहा तो दोस्त भी मक्कार हो गए
जिनके ज़मीर और जवानी पे दाग है
वो लोग इस निज़ाम में सरकार हो गए !
बहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteनई पोस्ट : शब्दों की तलवार
बहुत खूब .. शानदार शेर हैं ग़ज़ल के ...
ReplyDeleteअहा क्या बात है.........., मेरे शहर के लोग समझदार हो गए। बहुत खूब।
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