निगाहों निगाहों में मिलते रहे हम
न तुमने कहा कुछ न मेने सुनाया
वो दूरी कहाँ थी, वो कुछ फासले थे
न तुम आगे आयी न मैं आगे आया
न तुम थीं अकेले, न मैं था अकेले
थे चारों तरफ बस सवालों के घेरे
खुद ही सवालों में उलझे रहे हम
न तुमको मिला कुछ न मैंने ही पाया.
लकीरों को दोषी कहें भी तो कब तक
ये हालात आखिर सहें भी तो कब तक
ये बातें किताबी सबक बन रहीं हैं
न अपना है कोई न कोई पराया.
न तुमने कहा कुछ न मेने सुनाया
वो दूरी कहाँ थी, वो कुछ फासले थे
न तुम आगे आयी न मैं आगे आया
न तुम थीं अकेले, न मैं था अकेले
थे चारों तरफ बस सवालों के घेरे
खुद ही सवालों में उलझे रहे हम
न तुमको मिला कुछ न मैंने ही पाया.
लकीरों को दोषी कहें भी तो कब तक
ये हालात आखिर सहें भी तो कब तक
ये बातें किताबी सबक बन रहीं हैं
न अपना है कोई न कोई पराया.
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