फिर उसने ख़त पढ़े हैं शायद
अश्क़ आँखो से गिरे हैं शायद
अश्क़ आँखो से गिरे हैं शायद
तुमसे मिल के भी कुछ नहीं होता
मेरे कुछ ख़्वाब मरे हैं शायद
मेरे कुछ ख़्वाब मरे हैं शायद
हर घड़ी ऐहताराम करते हैं
आप शहर में नए हैं शायद
आप शहर में नए हैं शायद
मुझको पहचानने में इतना वक़्त
वो दोस्तों से घिरे हैं शायद
वो दोस्तों से घिरे हैं शायद
अब ना तखती हैं ना नारे हैं जनाब
नई दिल्ली में लोग डरे हैं शायद
नई दिल्ली में लोग डरे हैं शायद
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