Saturday, December 2, 2017

25

कोई शिकवा दरमियाँ नहीं
तो भी गुफ़्तगू आसाँ नहीं


मैं चुप सा रहने लगा हूँ अब
और,तुम्हारे मुँह में ज़ुबां नहीं


बड़े लोग तेरे शहर में हैं
बता मिलूँ कहाँ और कहाँ नहीं


कैसे मैं कहूँ मुझे भूल जा
मुझे ख़ुद पे इतना गुमा नहीं


मेरी आशिक़ी का सबब ना पूछ
मेरे रंज ओ ग़म का बयाँ नहीं


तेरा हाथ थामे निकल चलूँ
कहीं एसा कोई जहाँ नहीं

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