वहशत ए फ़िराक़ ज़िंदगी क्या हाल है
तेरे साथ हो या तेरे बग़ैर ,जीना मुहाल है
मुझे देख के तेरा यूँ मुँह मोड़ना हर बार
गर इत्तिफ़ाक़ है तो ग़ज़ब है कमाल है
तेरे शहर में होती हैं पत्थर की बारिशें
मैं लौट आया मेरे पास शीशे की ढाल है
ए फ़रिश्तों कभी मेरे घर भी आओ
ज़िंदगी के जानिब मेरा एक सवाल है
मेरा अंजाम जानने में इतनी मशक्कतें
तारीख़ में मेरे जैसी कितनी मिसाल है
अब बुज़दिली कहो या आदमी का हश्र
जो पानी है रगों में उसका रंग लाल है
तेरे साथ हो या तेरे बग़ैर ,जीना मुहाल है
मुझे देख के तेरा यूँ मुँह मोड़ना हर बार
गर इत्तिफ़ाक़ है तो ग़ज़ब है कमाल है
तेरे शहर में होती हैं पत्थर की बारिशें
मैं लौट आया मेरे पास शीशे की ढाल है
ए फ़रिश्तों कभी मेरे घर भी आओ
ज़िंदगी के जानिब मेरा एक सवाल है
मेरा अंजाम जानने में इतनी मशक्कतें
तारीख़ में मेरे जैसी कितनी मिसाल है
अब बुज़दिली कहो या आदमी का हश्र
जो पानी है रगों में उसका रंग लाल है
इतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद ~Rajasthan Ration Card suchi
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